যজুর্বেদ ২২/২২ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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23 June, 2022

যজুর্বেদ ২২/২২

देवता: लिङ्गोक्ता देवताः ऋषि: प्रजापतिर्ऋषिः छन्द: स्वराडुत्कृतिः स्वर: षड्जः

আ ব্রহ্মন্ ব্রাহ্মণো ব্রহ্মবর্চসী জায়তামা রাষ্ট্রে  

রাজন্যঃ শূরऽইষব্যোऽতিব্যাধী মহাররথো জায়তাম্

দোগ্ধ্রী ধেনুর্বোঢ়ানঙ্বানাশুঃ সপ্তিঃ পুরন্ধির্য়োষা জিষ্ণূ 

রথেষ্ঠাঃ সভেয়ো য়ুবাস্য য়জমানস্য বীরো জায়তাম্  

নিকামে নিকামে নঃ পর্জন্যো বর্ষতু ফলবত্যো 

নऽওষধয়ঃ পচ্যন্তাম্ য়োগক্ষেমো নঃ কল্পতাম্।।-(য়জুঃ ২২|২২)

आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः᳕ शूर॑ऽइष॒व्यो᳖ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्री॑ धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योषा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॑यतां निका॒मे नि॑कामे नः प॒र्जन्यो॑ वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगक्षे॒मो नः॑ कल्पताम् ॥

অর্থাৎ - হে জগদীশ দয়ালু ব্রহ্ম প্রভু! আমাদের বিনয় শুনুন, দেশে ধর্ম-কর্ম-ব্রতধারী ব্রাহ্মণ উৎপন্ন হোক, ক্ষত্রিয় হোক রণধীর মহারথ ধনুর্বেদের অধিকারী, ধেনু দুধওয়ালী হোক সুন্দর আর বৃষভ হোক তুরঙ্গ বলধারী, তুরঙ্গ গতিচপল হোক, অঙ্গনা হোক স্বরূপ গুণকারী। বিজয়ী রথি পুত্র জনপদের রত্ন হোক তেজস্বী আর বলশালী, যখনই জলের কামনা করা হবে জলধর জলের বর্ষণ করুক। মিষ্ট পাকা ফল হোক আর অনেক সুখের বনস্পতি হোক, য়োগক্ষেম দ্বারা সব পূর্ণ হোক।

पदार्थान्वयभाषाः -हे (ब्रह्मन्) विद्यादिगुणों करके सब से बड़े परमेश्वर ! जैसे हमारे (राष्ट्रे) राज्य में (ब्रह्मवर्चसी) वेदविद्या से प्रकाश को प्राप्त (ब्राह्मणः) वेद और ईश्वर को अच्छा जाननेवाला ब्राह्मण (आ, जायताम्) सब प्रकार से उत्पन्न हो (इषव्यः) बाण चलाने में उत्तम गुणवान् (अतिव्याधी) अतीव शत्रुओं को व्यधने अर्थात् ताड़ना देने का स्वभाव रखनेवाला (महारथः) कि जिसके बड़े-बड़े रथ और अत्यन्त बली वीर हैं, ऐसा (शूरः) निर्भय (राजन्यः) राजपुत्र (आ, जायताम्) सब प्रकार से उत्पन्न हो (दोग्ध्री) कामना वा दूध से पूर्ण करनेवाली (धेनुः) वाणी वा गौ (वोढा) भार ले जाने में समर्थ (अनड्वान्) बड़ा बलवान् बैल (आशुः) शीघ्र चलने हारा (सप्तिः) घोड़ा (पुरन्धिः) जो बहुत व्यवहारों को धारण करती है, वह (योषा) स्त्री (रथेष्ठाः) तथा रथ पर स्थिर होने और (जिष्णुः) शत्रुओं को जीतनेवाला (सभेयः) सभा में उत्तम सभ्य (युवा) जवान पुरुष (आ, जायताम्) उत्पन्न हो (अस्य, यजमानस्य) जो यह विद्वानों का सत्कार करता वा सुखों की सङ्गति करता वा सुखों को देता है, इस राजा के राज्य में (वीरः) विशेष ज्ञानवान् शत्रुओं को हटानेवाला पुरुष उत्पन्न हो (नः) हम लोगों के (निकामे निकामे) निश्चययुक्त काम-काम में अर्थात् जिस-जिस काम के लिये प्रयत्न करें, उस-उस काम में (पर्जन्यः) मेघ (वर्षतु) वर्षे (ओषधयः) ओषधि (फलवत्यः) बहुत उत्तम फलवाली (नः) हमारे लिये (पच्यन्ताम्) पकें (नः) हमारा (योगक्षेमः) अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति करानेवाले योग की रक्षा अर्थात् हमारे निर्वाह के योग्य पदार्थों की प्राप्ति (कल्पताम्) समर्थ हो, वैसा विधान करो अर्थात् वैसे व्यवहार को प्रगट कराइये ॥ भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थनासहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिये कि जिससे पूर्णविद्यावाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण हो ॥

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