Atharvaveda 4/34/2 - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

23 June, 2022

Atharvaveda 4/34/2

देवता: ब्रह्मौदनम् ऋषि: अथर्वा छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: ब्रह्मौदन सूक्त

अ॑न॒स्थाः पू॒ताः पव॑नेन शु॒द्धाः शुच॑यः॒ शुचि॒मपि॑ यन्ति लो॒कम्। नैषां॑ शि॒श्नं प्र द॑हति जा॒तवे॑दाः स्व॒र्गे लो॒के ब॒हु स्त्रैण॑मेषाम् ॥

 অনস্থাঃ পুতঃ পবনেন শুদ্ধাঃ শুচয়ঃ শুচিমপি যন্তি লোকম।

নৈষাং শিশনং প্রদহতি জাতবেদাঃ স্বর্গ লোকে বহুস্ত্রৈণমেষাম।।


ब्रह्मविद्या का उपदेश

पदार्थान्वयभाषाः -(अनस्थाः) न गिराने योग्य (पवनेन) शुद्ध आचरण से (पूताः) शुद्ध किये गये, (शुद्धाः) शुद्धस्वभाव, (शुचयः) प्रकाशमान महात्मा लोग (अपि) ही (शुचिम्) ज्योतिःस्वरूप (लोकम्) लोक [परमात्मा] को (यन्ति) पाते हैं। (जातवेदाः) प्राणियों का जाननेवाला परमेश्वर (एषाम्) इनकी (शिश्नम्) गति वा सामर्थ्य को (न) नहीं (प्रदहति) जलाता है। [इसलिये कि] (एषाम्) इन [महात्माओं] का (स्त्रैणम्) सृष्टि का हितकर्म (स्वर्गे) अच्छे प्रकार पाने योग्य सुखदायक (लोके) लोक [परमात्मा] में (बहु) बहुत है ॥२॥

भावार्थभाषाः -जितेन्द्रिय शुद्धस्वभाव योगी जन ही परमात्मा को पाते हैं और उस जगदीश्वर के सहारे में रह कर संसार का हित करते हुए सर्वत्रगति होते हैं ॥२॥

टिप्पणी:२−(अनस्थाः) असिसञ्जिभ्यां क्थिन्। उ० ३।१५४। इति असु क्षेपणे−क्थिन्। इति अस्थि क्षेपणम्। छन्दस्यपि दृश्यते। पा० ७।१।७६। इति अस्थि शब्दस्य अनङ् आदेशः। अनसनीयाः। अक्षेपणीयाः। अनिवारणीयाः, इत्यर्थः (पूताः) पवित्रीकृताः (पवनेन) शोधनकर्मणा (शुद्धाः) निर्मलाः (शुचयः) दीप्यमानाः परमयोगिनः (शुचिम्) दीप्यमानं ज्योतिर्मयम् (अपि) अवधारणे (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (लोकम्) परब्रह्मधाम (न) निषेधे (एषाम्) योगिनाम् (शिश्नम्) इण्सञ्जि०। उ० ३।२। इति शश प्लुतगतौ-नक्। शिश्नं श्नथतेः-निरु० ४।१९। गतिम्। बलम् (प्र) (दहति) भस्मीकरोति (जातवेदाः) अ० १।७।२। जातानां वेदिता परमेश्वरः (स्वर्गे) सु+अर्ज-घञ्। सुष्ठु अर्जनीये। सुखप्रदे (लोके) स्थाने (बहु) विपुलम् (स्त्रैणम्) स्त्यायतेर्ड्रट्। उ० ४।१६६। इति स्त्यै शब्दसंघातयोः-ड्रट्। लोपो व्योर्वलि। पा० ६।१।६६। इति यलोपः। टित्वात् ङीप्। इति स्त्री संहतिः। स्त्रीपुंसाभ्यां नञ्स्नञौ भवनात्। पा० ४।१।८७। तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति हितार्थे नञ्। स्त्रीभ्यः संहतिभ्यः सृष्टिभ्यो हितम् (एषाम्) ॥-पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

Atharvaveda 4/34/2


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