अथर्ववेद 10/2/32 - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

22 June, 2022

अथर्ववेद 10/2/32

 देवता: ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः ऋषि: नारायणः छन्द: अनुष्टुप् स्वर: ब्रह्मप्रकाशन सूक्त

तस्मि॑न्हिर॒ण्यये॒ कोशे॒ त्र्य॑रे॒ त्रिप्र॑तिष्ठिते। तस्मि॒न्यद्य॒क्षमा॑त्म॒न्वत्तद्वै ब्र॑ह्म॒विदो॑ विदुः ॥


पद पाठ

तस्मिन् । हिरण्यये । कोशे । त्र्यऽअरे । त्रिऽप्रतिस्थिते । तस्मिन् । यत् । यक्षम् । आत्मन्ऽवत् । तत् । वै । ब्रह्मऽविद: । विदु: ॥२.३२॥

अथर्ववेद 10/2/32

मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।


पदार्थान्वयभाषाः -(तस्मिन् तस्मिन्) उसी ही (हिरण्यये) अनेक बलों से युक्त, (त्र्यरे) [स्थान, नाम, जन्म इन] तीनों में गतिवाले, (त्रिप्रतिष्ठिते) [कर्म, उपासना ज्ञान इन] तीनों में प्रतिष्ठावाले (कोशे) कोश (भण्डाररूप जीवात्मा) में (यत्) जो (यक्षम्) पूजनीय (आत्मन्वत्) आत्मावाला [महापराक्रमी परब्रह्म] है, (तत् वै) उसको ही (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी लोग (विदुः) जानते हैं ॥३२॥

भावार्थभाषाः -जीवात्मा के बाहिर और भीतर ज्योतिःस्वरूप परब्रह्म है। उस परब्रह्म को वेदवेत्ता योगीजन साक्षात् करते हैं ॥३२॥

टिप्पणी:३२−(तस्मिन्) हिरण्यये। बलयुक्ते (कोशे) (त्र्यरे) त्रयाणां स्थाननामजन्मनाम् अरो गतिर्यस्मिन् तस्मिन् (त्रिप्रतिष्ठिते) त्रयाणां कर्मोपासनाज्ञानानां प्रतिष्ठायुक्ते (तस्मिन्) (यत्) (यक्षम्) पूजनीयम् (आत्मन्वत्) अ० ४।१०।७। आत्मबलवत्। महापराक्रमयुक्तं परब्रह्म (तत्) ब्रह्म (वै) (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानिनः (विदुः) जानन्ति ॥-पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

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