য়স্তে স্তনঃ শশয়ো য়ো ময়োভূর্য়েন বিশ্বা পুষ্যসি বার্য়াণি।
য়ো রত্নধা বসুবিধঃ সুদত্রঃ সরস্বতি তমিহ ধাতবে কঃ।। (ঋঃ ১|১৬৪|৪৯)
-বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার এই মন্ত্রের ভাষ্যকার মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী ভাষ্যকরেছেন.. মাতা যেমন নিজ স্তনের দুগ্ধ দ্বারা সন্তানদের রক্ষা করেন, তেমন সমস্ত বিদুষী স্ত্রী কুটুম্বদের রক্ষা করেন, যেমন সুন্দর ঘৃতার্থ পদার্থের ভোজন করে শরীর বলবান হয়, তেমন মাতার সুশিক্ষা পেয়ে আত্মা পুষ্ট হয়।।
यस्ते॒ स्तन॑: शश॒यो यो म॑यो॒भूर्येन॒ विश्वा॒ पुष्य॑सि॒ वार्या॑णि।
यो र॑त्न॒धा व॑सु॒विद्यः सु॒दत्र॒: सर॑स्वति॒ तमि॒ह धात॑वे कः ॥
पदार्थ -
हे (सरस्वति) विदुषी स्त्री ! (ते) तेरा (यः) जो (शशयः) सोतासा शान्त और (यः) जो (मयोभूः) सुख की भावना करनेहारा (स्तनः) स्तन के समान वर्त्तमान शुद्ध व्यवहार (येन) जिससे तू (विश्वा) समस्त (वार्याणि) स्वीकार करने योग्य विद्या आदि वा धनों को (पुष्यसि) पुष्ट करती है (यः) जो (रत्नधाः) रमणीय वस्तुओं को धारण करने और (वसुवित्) धनों को प्राप्त होनेवाला और (यः) जो (सुदत्रः) सुदत्र अर्थात् जिससे अच्छे-अच्छे देने हों (तम्) उस अपने स्तन को (इह) यहाँ गृहाश्रम में (धातवे) सन्तानों के पीने को (कः) कर ॥ ४९ ॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता अपने स्तन के दूध से सन्तान की रक्षा करती है, वैसे विदुषी स्त्री सब कुटुम्ब की रक्षा करती है, जैसे सुन्दर घृतान्न पदार्थों के भोजन करने से शरीर बलवान् होता है, वैसे माता की सुशिक्षा को पाकर आत्मा पुष्ट होता है ॥ ४९ ॥
ऋग्वेद भाष्य (स्वामी दयानन्द सरस्वती के संस्कृत भाष्य के आधार पर)
विषय - फिर यहाँ विदुषी स्त्री के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
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