अयोध्याकाण्ड के 27वें सगँ में लिखा है
अनुशिष्टास्मि मात्रा च पित्रा च विविधाश्रयम् ।
नास्ति संप्रति वक्तव्यो वर्तितव्य यथा मया ।। 9
किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इस विषय में अपेक्षित उपदेश मुझे अपने माता-पिता से बहुत पहले मिल चुका है। इसलिए इस विषय में आपको मुझे कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं है।
यह सब सीता ने राम से उस समय कहा था जब वनगमन के समय राम सीता को अपने साथ न ले जाकर घर में रहते हुए साम-ससुर की सेवा करके और भरत की आज्ञा में रहने के लिए समझा रहे थे। विवाह के बाद सीता कभी नेहर गई हो या उसके माता-पिता बेटी से मिलने कभी अयोध्या आये हो, इसका कोई उल्लेख रामायण में नहीं मिलता। इससे स्पष्ट है कि विवाह के समय अथवा उससे पूर्व सीता उस अवस्था को प्राप्त कर चुकी थी जिसमें किसी कन्या को अपने पति और सास-ससुर के प्रति उसके कत्र्तव्यों का बोध कराया जा सके । इसकी पुष्टि बनवास काल में अत्रि मुनि के आश्रम में अनसूया से हुई सीता को बातचीत से भी होती है। सीता ने मुनि पत्नी को बताया था
पाणिप्रदानकाले च यत्पुरा त्यग्नि सन्निधौ ।
अनुशिष्टा जनन्यास्मि वाक्यं तदपि मे धतम् ।।
१ति शुश्रूषणान्नार्यास्तपो नान्यद्धि धोयते ॥ भयो० 118/8-9
विवाह के समय मेरी माता (जननी) ने अग्नि के सम्मुख जो उपदेश दिया था उसे मैं किचित् भूली नहीं हूँ । उस उपदेश को मैंने हृदय में सुरक्षित रक्खा है। माता ने कहा था कि स्त्री के लिए पति-सेवा से बढ़कर और कोई तप नहीं है।
जब सीता स्वयंवर (वस्तुतस्तु वीर्यशुल्का होने के कारण सीता के लिए अपने पति का स्वयं वरण करने का अवसर उपस्थित नहीं हुआ) के अवसर पर विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को लेकर जनकपुरी पहुॅचे तो उन दोनों भाइयों के रूप लावण्य को देखकर जनक ने___________________
परिपप्रच्छ प्राज्ञ्जलिः प्रणतो नृपः
इमौ कुमारी भद्रं ते देवतुल्यौ पराक्रमी ।।
गजमहगती वीरो शार्दूल वृषभोपमी
पद्मपत्रविशालाक्षौ खङ्गतूणीधनुर्धरौ ।।
अश्विनाविव रूपेण समुपस्थितयौवनी
यदृच्छेवगां प्राप्ती देवलोकदिवामरी ॥-बाल० 50/17-19
आश्चर्यचकित हो हाथ जोड़कर विश्वामित्र से पूछा- हे मुनिवर ! गज और सिंह के समान चाल वाले, देवताओं के समान पराक्रमी तथा अश्विनी कुमारों के समान सुन्दर, यौवन को प्राप्त कुमार कौन हैं।
यहाँ 'समुस्थितयीवनी' पद विशेष रूप से द्रष्टव्य है। इससे सर्वथा विस्पष्ट है कि उस समय राम-लक्ष्मण दोनों युवावस्था में प्रवेश कर चुके थे। जनकपुरी पहुँचने से पहले मार्ग में राम अनेक राक्षसों का संहार कर चुके थे और विवाह से पूर्व हो, अनेक शूरवीरों के असमर्थ होने पर शिव धनुष को तोड़ कर अपने बल का प्रदर्शन कर चुके थे। इससे राम के अतुल बलशाली होने के साथ ही उनका यौवन प्राप्त होना प्रमाणित होता है।
जब विश्वामित्र ने राजकुमारों धनुष देखने की इच्छा व्यक्त की तो जनक ने सीता के विवाह के सन्दर्भ में धनुष भंग की चर्चा करते हुए कहा
तां तु वर्द्धमानां ममात्मजाम् ।
वरयामासुरागत्य राजानो मुनिपुङ्गवाः । बाल० 66/15
जब मेरी कन्या सीता 'वर्द्धमाना' == प्राप्तयौवना हुई तो बहुत-से राजा उसका हाथ मांगने आने लगे। पर (धनुष न उठा सकने के कारण) सब असफल रहे।
मूल श्लोक में 'वर्द्धमाना' शब्द है। टीकाकारों में किसी ने इसका अर्थ 'यौवन-संपन्ना' किया है और किसी ने प्राप्तयोवना'। इससे इतना तो पता चलता ही है कि 'समुपस्थित योवन' राम के साथ जब सीता का विवाह हुआ था तो विवाह से पूर्व उसके शरीर में योवन का सूत्रपात हो चुका था। 'बर्द्धमाना' का अर्थ यहाँ 'बढ़ती हुई' न होकर प्राप्तयोवना' ही संगत है, यह अयोध्याकाण्ड में बाये निम्न श्लोक से प्रमाणित है---
पतिसंयोगसुलभा वयोऽवेक्ष्य पिता मम ।
चिन्तामभ्यगमद्दोनो वित्तनाशादिवाघनः ।।-118/34
सीता ने अनसूया से कहा----पिता ने जब मेरी पति संयोग सुलभ अवस्था
देखी तो उनको बड़ी चिन्ता हुई। मेरे पिता को वैसा हो दुःख हुबा जैसा किसी दरिद्र को धन का नाश होने पर होता है। 'पति-संयोग-सुलभ वयस्' का सीधा अर्थ 'विवाह योग्य वयस्' अर्थात् 'गर्भाधान में समर्थ' है। इसकी अवस्था के विषय में सुश्रुत संहिता में लिखा है
पञ्चविशे ततो वर्षे पुमान् नारी तो षोडशे ।
समत्वागतर्वायों तो जानीयात् कुशली भिषक् ।।
पुरुष के लिए यह अवस्था 25 वर्ष का होने पर और स्त्री के लिए 16 वर्ष की होने पर आती है। विवाह संपन्न हो जाने पर दशरथ ने अपनी पुत्रवधुओं के साथ अयोध्या में प्रवेश किया। तब
अभिवाद्याभिवाद्याश्च सर्वा राजसुतास्तदा ।
रेमिरे मुदिताः सर्वाः भ्रातृभिः सहितारह-"बाल 77/13-14
मंगलाचार के पश्वात् प्रसन्न हो सव राजकन्याओं ने अभिवादन के योग्य ( वृद्धजनों) का अभिवादन करके एकान्त में अपने पतियों के साथ रमण किया। इसी प्रकार संसार में पराक्रम में अप्रतिम राजकुमारों ने भी रमण किया । आधुनिक (प्रचलित) भाषा में इसी को को 'सुहागरात' तथा कर्मकाण्ड में 'धतुर्थी कर्म' अथवा 'गर्भाधान' कहते हैं। राम-लक्ष्मण के प्राप्तयोवन होने का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। पतियों के साथ एकान्त में रमण करने से सीता आदि के प्राप्तयोवना होने और प्राप्तयौवना होने से उनकी अवस्था का सहज हो अनुमान किया जा सकता है। सोलह वर्ष से कम तो हो ही नहीं सकती। जो कुछ बालकाण्ड (77/13-14) में कहा गया है उसकी पुष्टि किंचिद्
भिन्न शब्दों में अयोध्याकाण्ड के निम्न श्लोक से भी होती है—
रामलक्ष्मणशत्रुघ्नभरता
देव समन्विताः ।
स्वां स्वां भार्यामुपादाय रेमिरे स्व-स्व मन्दिरे 117/52
अयोध्या पहुँचने पर सबसे मिलने-जुलने के बाद देव प्रतिभ राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने महल में रमण करने लगे ।
सीता को जबरदस्ती वर्ष की सिद्ध करने के लिए कोई-कोई दुराग्रही लोग "रेमिरे' शब्द को यहाँ खेलने-कूदने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ बताते हैं। रमणी को 'रमणी' इसलिए कहते हैं कि उसमें रमण किया जाता है— 'रमयति रम्यते वा अस्यां वा रम्यते' (अमर 2/6/3) और एक घर से आए 6-6 साल के बच्चे परस्पर मिल-जुल कर खेलेंगे या अकेले-अकेले एकान्त में खेलेंगे और वह भी अनजाने बड़े बड़े पुरुषों के साथ ?
अरण्यकाण्ड में सीता के अपहरण के लिए आए रावण को अपना परिचय देते
समय सीता कहती है
उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने ।
भुञ्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी ।।
मम भर्त्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः ।
अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते ।।47/4,10
बारह वर्ष ससुराल में रहकर, समस्त भोगों का उपभोग करके मैं राम-लक्ष्मण के साथ वन में आई हूं। मेरे तेजस्वी स्वामी राम की अवस्था उस समय पचीस वर्ष थी और मेरी अठारह वर्ष रामायण के किसी-किसी संस्करण में पंचविंशक के स्थान में सप्तर्विकशः पाठ भी मिलता है। वनगमन के समय कौशल्या ने राम से कहा था – “दशसप्त व वर्षाणि तव जातस्य राघव (अयो० 20/45 ) अर्थात् तेरा जन्म (द्विजो में उपनयन संस्कार के द्वारा दूसरा जन्म ) हुए 10 + 7 = 17 वर्ष हुए। 'एकादशे राजन्यम्' (रघुकुल में मान्य परम्परा के अनुसार) क्षत्रिय का उपनयन संस्कार 11 वर्ष की आयु में होता था। इस प्रकार रामायण के अनुसार वनगमन के समय 11 +17 = 28 वर्ष के थे ।
सीता ने रावण के साथ हुई अपनी बातचीत में वन में आने के समय अपनी अवस्था 18 वर्ष बताई है और बन के लिए प्रस्थान ससुराल में 12 वर्ष विताने के बाद बताया है । इस प्रकार ससुराल में आने अर्थात् विवाह होने के समय सोता की अवस्था मात्र 6 वर्ष ठहरती है, जो ऊपर दिए गए विस्तृत विवरण के बाधार पर नितान्त अशुद्ध सिद्ध होती है। 6 वर्ष की लड़की न पति-संयोग सुलभ-वयः होती है और न पति के साथ रमण कर सकती है और न पति, सास, ससुर आदि के प्रति अपने कर्त्तव्यों को समझ सकती है, उनका पालन करना तो बहुत दूर की बात है।
प्रथम तो सीता जी की विवाह के समय 6 वर्ष आयु मानने का कारण वाल्मीकि रामायण में दिया गया एक श्लोक हैं जिसे अरण्य कांड 47/4,10 में सीता रावण को अपना परिचय देते हुए कहती हैं की मेरी आयु इस समय 18 वर्ष हैं , मैं 12 वर्ष ससुराल में रहकर, समस्त भोगों का उपभोग करके मैं राम-लक्ष्मण के साथ वन में आई हूँ। अर्थात विवाह के समय सीता जी की आयु केवल 18-12=6 वर्ष ही थी।
इस श्लोक को आधार बनाकर सीता जी की विवाह के समय आयु 6 वर्ष सिद्ध करने को हम रामायण आदि शास्त्रों से परीक्षा करेंगे।
1. जब ऋषि विश्वामित्र श्री राम और श्री लक्ष्मण को लेकर जनक राज के समक्ष पधारे तो उन्हें देखकर राजा जनक ने आश्चर्यचकित हो हाथ जोड़कर विश्वामित्र से पूछा – हे मुनिवर! गज और सिंह के समान चल वाले, देवताओं के समान पराक्रमी तथा अश्विनी कुमारों के समान सुन्दर, यौवन को प्राप्त कुमार कौन हैं।
सन्दर्भ – बालकाण्ड 50/17-19
इसी बालकाण्ड में सर्ग 48 राजा सुमति ने भी राम और लक्ष्मण को देखकर यौवन से भरपूर सुन्दर हथियार धारण किया हुआ कहा हैं।
(यहाँ श्री राम जी और श्री लक्ष्मण जी को कहाँ गया हैं। ऐसी अवस्था सुश्रत के अनुसार 25 वर्ष और की 16 वर्ष की आयु में ही होती हैं)
2. जब विश्वामित्र ने राजकुमारों की धनुष देखने की इच्छा व्यक्त की तो जनक ने सीता के विवाह के सन्दर्भ में धनुष भंग की चर्चा करते हुए कहा-
जब मेरी कन्या सीता ‘वर्द्धमाना‘=प्राप्तयौवना हुई तो बहुत से राजा उसका हाथ माँगने आने लगे। पर सब असफल रहे।
सन्दर्भ – बालकाण्ड 66/15
(यहाँ सीता को यौवन प्राप्त युवती कहा गया हैं)
3. सीता ने अनसूया से कहा- पिता ने जब मेरी पति संयोग सुलभ अवस्था देखी तो उनको बड़ी चिंता हुई। मेरे पिता को वैसी ही चिंता हुई जैसा किसी दरिद्र के धन का नाश होने पर होती हैं।
सन्दर्भ- अयोध्या काण्ड118/34
(किसी भी पिता के मन में अपनी बेटी के विवाह की चिंता जब वह 6 वर्ष की होती हैं तब उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं हैं)
4. अयोध्या पहुँचने पर सबसे मिलने- जुलने के बाद चारों राजकुमार अपनी अपनी पत्नियों को लेकर अपने अपने महल में रमण करने लगे।-अयोध्या काण्ड- 7/52
(6 वर्ष की राजकुमारी महलों में खेलने लायक होती हैं, न की पति के साथ रमण करने लायक!)
5. बालकाण्ड 6/29-31 में सीता की शारीरिक अवस्था को सम्पूर्ण युवती वाला बताया गया हैं।
6. तुलसी कृत रामचरितमानस में भी कहीं पर भी सीता जी की विवाह के समय आयु 6 वर्ष नहीं लिखी हैं।
इन सब से सिद्ध होता हैं की यह श्लोक मिलावटी हैं
फिर अध्यात्मरामायण (बालकाण्ड, अध्याय 6, श्लोक 29-31) में सीता को 'स्मितवक्त्रा, सर्वाभूषणभूषिता, मुक्ताहारैः कर्णपत्रं: कणञ्चलितनूपुरास्मय बदना तथा वस्त्रान्तरव्यञ्जितस्तनी' कहा है। क्या यह वर्णन 6 वर्ष की खेलती कूदती बालिका का हो सकता है ? यहाँ सर्वाधिक विचारणीय पद है-वस्त्रान्त व्यक्जिस्तनी'। क्या 6 वर्ष की बालिका के स्तन पहने हुए वस्त्र (चोली) के भीतर से झाँक सकते है ?


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