শ্রদ্ধয়াগ্নিঃ সমিধ্যতে শ্রদ্ধয়া হূয়তে হবিঃ।
শ্রদ্ধাং ভগস্য মূর্ধনি বচসা বেদয়ামসি।।
श्र॒द्धया॒ग्निः समि॑ध्यते श्र॒द्धया॑ हूयते ह॒विः । श्र॒द्धां भग॑स्य मू॒र्धनि॒ वच॒सा वे॑दयामसि ॥
পদার্থঃ (শ্রদ্ধয়া) যথাবৎ ধারণা, যথাবৎ শাস্ত্রবিধি থেকে (অগ্নিঃ সমিধ্যতে) অগ্নি সাধু রূপে দীপ্ত হয়ে (শ্রদ্ধয়া) যথাবৎ হোম পদ্ধতি দ্বারা (হবিঃ-হূয়তে) হোমের দ্রব্য উত্তম হোমে যুক্ত হয়ে (ভগস্য মূর্ধনি) ঐশ্বর্যের উৎকৃষ্ট অঙ্গে স্থিত (শ্রদ্ধাম্) যথাবৎ ধারণাকে (বচসা) ভাষণ দ্বারা (আ বেদয়ামসি) আমরা ঘোষিত করি।।
ভাবার্থঃ শ্রদ্ধা-শ্রৎ-ধা, সত্য ধারণা অথবা যথাবৎ ধারণা শাস্ত্রানুসার হয়, শাস্ত্রানুসার অগ্নি চয়ন করার পরেই অগ্নি প্রদীপ্ত হয়, শাস্ত্রপদ্ধতি দ্বারা হব্য দ্রব্য যথার্থ প্রকার হোমে যায়, ঐশ্বর্যের উপরে-উৎকৃষ্ট অঙ্গে অর্থাৎ যথাবৎ প্রাপ্ত ঐশ্বর্যে শ্রদ্ধা প্রদর্শিত হয়ে এই ঘোষিত করা উচিত, এইজন্য অবৈধ ধনে শ্রদ্ধার কার্য হয় না।।-ভাষ্যঃ স্বামী ব্রহ্মমুনি পরিব্রাজক বিদ্যামার্তণ্ডपदार्थान्वयभाषाः -(श्रद्धया) यथावद् धारणा, यथावद् शास्त्रविधि से (अग्निः सम् इध्यते) अग्नि साधुरूप में दीप्त होता है (श्रद्धया) यथावद् होमपद्धति से (हविः-हूयते) होम्य द्रव्य अच्छा होमने को युक्त होता है (भगस्य मूर्धनि) ऐश्वर्य के उत्कृष्ट अङ्ग पर स्थित (श्रद्धाम्) यथावद् धारणा को (वचसा) भाषण द्वारा (आ वेदयामसि) हम घोषित करते हैं ॥
भावार्थभाषाः -श्रद्धा-श्रत्-धा, सत्य धारणा या यथावत् धारणा शास्त्रानुसार होती है, शास्त्रानुसार अग्नि चयन करने पर ही अग्नि प्रदीप्त होती है, शास्त्रपद्धति से हव्य द्रव्य भली प्रकार होमा जाता है, ऐश्वर्य के ऊँचे-उत्कृष्ट अङ्ग पर अर्थात यथावद् प्राप्त ऐश्वर्य पर श्रद्धा प्रदर्शित होती है, यह घोषित करना चाहिये, इसीलिए बुरे धन पर श्रद्धा का कार्य नहीं होता है ॥-ब्रह्ममुनि
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