आजकल की दलित पिछड़ी और जनजाति कही जानेवाली जातियों को मनु ने शूद्र नहीं कहा है, अपितु जो पढ़ने-पढ़ाने का पूर्ण अवसर देने के बाद भी न पढ़ सके और केवल शारीरिक श्रम से ही समाज की सेवा करे, वह शूद्र है। (मनु0 1/90)। मनु प्रत्येक मनुष्य को समान शिक्षाध्ययन करने का समान अवसर देते हैं। जो अज्ञान, अन्याय, अभाव में से किसी एक भी विद्या को सीख लेता है, वही मनु का द्विज अर्थात् विद्या का द्वितीय जन्मवाला है। परन्तु जो अवसर मिलने के बाद भी शिक्षा ग्रहण न कर सके, अर्थात् द्विज न बन सके वह एक जाति जन्म (मनुष्य जाति का जन्म) में रहनेवाला शूद्र है। दीक्षित होकर अपने वर्णों के निर्धारित कर्मों को जो नहीं करता, वह शूद्र हो जाता है, और शूद्र कभी भी शिक्षा ग्रहण कर ब्राह्मणादि के गुण, कर्म, योग्यता प्राप्त कर लेता है, वह ब्राह्मणादि का वर्ण प्राप्त कर लेता है। प्रत्येक व्यक्ति जन्म से शूद्र होता है। संस्कार में दीक्षित होकर ही द्विज बनता है (स्कन्दपुराण)। इस प्रकार मनुकृत शूद्रों की परिभाषा वर्तमान शूद्रों और दलितों पर लागू नहीं होती। (10/4, 65 आदि)। (2) शूद्र अस्पृश्य नहीं-मनु ने शूद्रों के लिए उत्तम, उत्कृष्ट और शुचि जैसे विशेषणों का प्रयोग किया है, अतः मनु की दृष्टि में शूद्र अस्पृश्य नहीं है। (मनु0 9/335) शूद्रों को द्विजाति वर्णों के घरों पर भोजन आदि कार्य करने का निर्देश दिया है। (मनु0 1/91, 9/334-335)। शूद्र, अतिथि और भृत्य (शूद्र) को पहले भोजन कराया जाए। (मनु0 3/112, 116)। क्या आज के वर्णरहित समाज में शूद्र नौकर को पहले भोजन कराया जाता है ? इस प्रकार मनु शूद्र को निन्दित अथवा घृणित नहीं मानते थे। (3) शूद्र को सम्मान व्यवस्था में छूट-मनु की सम्मान व्यवस्था में सम्मान गुण, योग्यता के अनुसार होकर विद्यमान अधिक सम्मानीय होता है। पर वृद्ध शूद्र को सर्व˗प्रथम सम्मान देने का निर्देश दिया गया है। (मनु0 2/111, 112, 130, 137)। (4) शूद्र को धर्म पालन की स्वतन्त्रता – मनु ने शूद्रों को धार्मिक कार्य करने की पूरी स्वतन्त्रता दी है। (मनु0 10/126) इतना ही नहीं यह भी कहा है कि शूद्र से भी उत्तम धर्म को ग्रहण कर लेना चाहिए। (5) दण्ड-व्यवस्था में शूद्र को सबसे कम दण्ड-मनु ने शूद्र को सबसे कम दण्ड, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण को उत्तरोत्तर अधिक दण्ड, परन्तु राजा को सबसे अधिक दण्ड देने का विधान किया है। (मनु0 8/337-338, 338, 347)। (6) शूद्र दास नहीं-शूद्र दास, गुलाम अर्थात् बन्धुआ मजदूर नहीं है। सेवकों/भृत्यों को पूरा वेतन देने का आदेश दिया है और उनका अनावश्यक वेतन न काटा जाए, ऐसा निर्देश है। (7/125, 126, 8/216)। (7) शूद्र सवर्ण हैं-मनु ने शूद्र सहित चारों वर्णों को सवर्ण माना है। चारों वर्णों से भिन्न असवर्ण हैं। (मनु0 10/4, 45) पर बाद का समाज शूद्र को असवर्ण कहने लग गया। उसी प्रकार मनु ने शिल्पी-कारीगर को वैश्य वर्ण में माना है, पर बाद में समाज इन्हें भी शूद्र कहने लगा (मनु0 3/64, 9/329, 10/99, 120)। इस प्रकार मनु की व्यवस्थाएँ न्यायपूर्ण हैं। उन्होंने न शूद्र और न किसी और के साथ अन्याय और पक्षपात किया है।
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স্বাগতম
10 January, 2022
मनु शूद्र अर्थात् दलित विरोधी नहीं थे
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